(संकलन लक्ष्मी प्रेमाणी)
जहाँ विश्व इतिहास में सभ्यताओं की गिनती होती है, वहाँ (सिंधु घाटी सभ्यता) अपने संगठित नगर-निगम, सुव्यवस्थित जल–प्रबंधन, व्यापार और सामाजिक सौहार्द के लिए सदैव स्मरणीय रहेगा। लेकिन क्या हम भूल चुके हैं कि हमारी संवेदनशीलता, हमारी सभ्यता और हमारी सांस्कृतिक समृद्धि का यह स्रोत आज भी हमारी पहचान है? यही कारण है कि विश्व भर में रहने वाले सिन्धी समुदाय ने 2009 से हर साल एक ऐसा दिन तय किया है, जब अपनी संस्कृति, विरासत और पहचान को गर्व के साथ मनाया जाए — और उसे न केवल याद रखा जाए, बल्कि आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाया जाए।
हर वर्ष, दिसम्बर मा के प्रथम रविवारको मनाया जाता है सिंधी संस्कृति दिवस। इस अवसर पर, सिन्धी टोपी, पारंपरिक अजराक़ (Ajrak) और सांस्कृतिक वेश–भूषा, संगीत, लोक कला, नृत्य, साहित्य और सार्वजनिक सभाओं के माध्यम से सिन्धी एवं सिंधु-संस्कृति का उत्सव मनाया जाता है।
यह दिन पहली बार 6 दिसंबर 2009 को मनाया गया था, जब इसे शुरुआत में “सिंधी टोपी दिवस (Sindhi Topi Day)” कहकर मनाया गया। तब यह न सिर्फ एक सांकेतिक घटना थी, बल्कि सिन्धी समाज की एकता और सांस्कृतिक गौरव की भावना को ज़ाहिर करने का माध्यम।
धीरे–धीरे, यह केवल टोपी या वेशभूषा तक सीमित न रहकर, पूरी सिन्धी संस्कृति — भाषा, पहनावा, लोक कला, संगीत, इतिहास एवं सभ्यता — के उत्सव में बदल गया। तब से इसे स्थायी रूप से हर वर्ष पहले रविवार दिसम्बर को मनाया जाने लगा।
इस प्रकार, 2009 से अब तक लगभग दो दशक हो चुके हैं, और यह दिवस विश्व में बसे सिन्धी समुदाय के लिए सिंधी कल्चरल दे बन चुका है
*सिन्धी समुदाय के लोगों की पारंपरिक वेशभूषा —* अजराक़ (Ajrak) और सिन्धी टोपी — पहन कर सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करते हैं।
लोक-संगीत, पारंपरिक नृत्य, कवि-सभा, साहित्यिक एवं ऐतिहासिक चर्चाएँ, प्रदर्शनी, रैलियाँ, और सांस्कृतिक प्रदर्शनियों के माध्यम से सिंधु सभ्यता की शान को पुनः जागृत किया जाता है।
यह केवल एक रंग–रोगन-भरा उत्सव नहीं, बल्कि शांति, एकता और सांस्कृतिक समृद्धि का जश्न है। सिन्धी संस्कृति दिवस के माध्यम से विश्व के सिन्धी वंशज अपने इतिहास, अपनी जड़ों और अपनी सांस्कृतिक पहचान से जुड़ते है
*संस्कृति से पहचान तक* — आधुनिकता, तकनीक और वैश्वीकरण के दौर में हमारी जड़ों, हमारी सभ्यता, हमारे पूर्वजों की उपलब्धियों को भूल जाना आसान है। यह दिवस हमें याद दिलाता है कि हमारी सांस्कृतिक जड़ें कितनी प्राचीन और समृद्ध थीं।
*विरासत का संरक्षण —* लोक कला, संगीत, वेशभूषा, भाषा — यह सब हमारी पहचान हैं। सिन्धी संस्कृति दिवस हमें प्रेरित करता है कि हम इन्हें भूलने न दें, बल्कि आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाएँ।
*एकता और सम्मान —* विभिन्न धर्म, जाति, भाषा या देश — सीमाओं से परे, संस्कृति एक सेतु है। यह दिवस बताता है कि सांस्कृतिक विविधता में भी सम्मान और एकता संभव है।
*इतिहास से वर्तमान तक —* पुल का निर्माण — प्राचीन सिंधु सभ्यता के मूल्य — स्वच्छता, व्यवस्थित जीवन, सामूहिकता, संतुलित विकास — आज भी प्रासंगिक हैं। इस दिवस का जश्न हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि आधुनिक विकास के साथ इन्हें कैसे जीवंत रखा जाए।
*सिंधी संस्कृति दिवस केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि एक प्रतिबद्धता है —* हमारी संस्कृतिक जड़ों को न भूलने, उन्हें गर्व से अपनाने, और उन्हें आने वाली पीढ़ियों के लिए संरक्षित रखने की।
आज जब हम प्रगति, विकास और आधुनिकता की ओर बढ़ रहे हैं, तब यह और भी ज़रूरी हो जाता है कि हमारी पहचान — हमारी संस्कृति, हमारी विरासत की नींव मजबूत रहे।
प्रत्येक प्रथम रविवार दिसम्बर को जब हम अजराक़ ओढ़ें, टोपी लगाएँ, लोक गीत सुनें, संस्कृति मनाएँ — तो केवल उत्सव नहीं, हम अपनी सभ्यता को जीवित रख रहे होते हैं।
सिंधु संस्कृति दिवस — हमारी जड़ों की गूँज, हमारी पहचान की पुकार।
